शनिकथा तथा इतिहास

हमारे दैनंदिन जीवन में तेजपुंज तथा शक्तिशाली शनि का अदभुत महत्व है | वैसे शनि सौर जगत के नौ ग्रहों में से सातवा ग्रह है; जिसे फलित ज्योतिष में अशुभ माना जाता है | आधुनिक खगोल शास्त्र के अनुसार शनि की धरती से दुरी लगभग नौ करोड मील है | इसका व्यास एक अरब बयालीस करोड साठ लाख किलोमीटर है तथा इसकी गुरुत्व शक्ति धरती से पंचानवे गुना अधिक है | शनि को सूरज की परिक्रमा करने पर उन्नीस वर्ष लगते है | अंतरिक्ष में शनि सधन नील आभा से खूबसूरत , बलवान , प्रभावी , दृष्टिगोचर है, जिसे २२ उपग्रह है |

शनि का गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी से अधिकतम है | अत: जब हम कोई भी विचार मन में लाते है , योजना बनाते है, तो वह प्रत्सावित अच्छी – बुरी योजना चुंबकीय आकर्षन से शनि तक पहुँचती है और अच्छे का परिणाम अच्छा जब की बुरे का बुरा परिणाम जल्द दे देती है | बुरे प्रभाव को फलज्योतिष में अशुभ माना गया है | लेकिन अच्छे का परिणाम अच्छा होता है अत: हम शनि को शत्रु नहीं मित्र समझे और बुरे कर्मो के लिए वह साडेसाती है, आफत है ; शत्रु है |

शनिदेव की जन्म गाथा या उत्पति के संदर्भ में अलग – अलग कथा है | सबसे अधिक प्रचलित शनि उत्पति की गाथा स्कंध पुराण के काशीखण्ड में इस प्रकार प्रस्तुत

सूर्यदेवता का ब्याह दक्ष कन्या संज्ञा के साथ हुआ | संज्ञा सूर्यदेवता का अत्याधिक तेज सह नहीं पाती थी | उन्हें लगता था की मुझे तपस्या करके अपने तेज को बढ़ाना होगा या तपोबल से सूर्य की अग्नि को कम करना होगा; लेकिन सूर्य के लिए वो पतिव्रता नारी थी | सूर्य के द्वारा संज्ञा के गर्भ से तीन संतानों का जन्म हुआ – १. वैवस्वत मनु २. यमराज ३. यमुना. संज्ञा बच्चों से बहुत प्यार करती थी; मगर सूर्य की तेजस्विता के कारण बहुत परेशान रहती थी | एक दिन संज्ञा ने सोचा कि सूर्य से अलग होकर मै अपने मायके जाकर घोर तपस्या करूंगी; और यदि विरोध हुआ तो कही दूर एकान्त में जाकर तप करना उचित रहेगा |

संज्ञा ने तपोबल से अपने ही जैसी दिखने वाली छाया को जन्म दिया, जिसका नाम ‘ सुवर्णा ‘ रखा अत: संज्ञा की छाया सुवर्णा | छाया को अपने बच्चोँ की जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि आज से तुम नारी धर्म मेरे स्थान पर निभाओगी और बच्चों कि परवरिश भी करोगी | अगर कोई आपत्ति आ जाये तो मुझे बुला लेना मै दौडी चली आऊँगी, मगर एक बात याद रखना कि तुम छाया हो संज्ञा नहीं यह भेद कभी किसी को पता नहीं चलना चाहिए |

संज्ञा छाया को अपनी जिम्मेदारी सौपकर अपने पीहर – मायके चली गयी | घर पहुँचकर पिताश्री को बताया कि मै सूर्य का तेज सहन नहीं करसकती, अत: तप करने अपने पति से बिना कुछ कहे मायके आयी हूँ | सुनकर पिताने संज्ञा को बहुत डाटा – फटकारा और कहा कि , ‘ बिन बुलाये बेटी यदि मायके में आए तो पिता व पुत्री को दोष लगता है | बेटी तुम जल्द अपने ससुराल सूर्य के पास लौट जाओ ‘ ,तब संज्ञा सोचने लगी कि यदि मै वापस लौटकर गई तो छाया को मैंने जो कार्यभार सौंपा है उसका क्या होगा ? छाया कहाँ जायेगी ? सोचकर संज्ञा ने भीषण , घनघोर जंगल में , ( जो उत्तर कुरुक्षेत्र में था ) शरण ले ली |

अपनी खुबसूरती तथा यौवन को लेकर उसे जंगल में डर था अत: उसने बडवा – घोडी का रूप बना लिया कि कोई उसे पहचान न सके और तप करने लगी | धर सूर्य और छाया के मिलन से तीन बच्चों का जन्म हुआ | सूर्य छाया दोनों एक दूसरे पर संतुष्ट थे, सूर्य को कभी संदेह नहीं हुआ | छाया ने जिन तीन बच्चों को जन्म दिया वे है – १. मनु २.शनिदेव ३. पुत्री भद्रा ( तपती )

दूसरी कथा के अनुसार शनिदेव कि उत्पति महर्षि कश्यप के अभिभावकत्व में कश्यप यज्ञ से हुई | जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो शिव भक्तिनी छाया ने शिव कि तनी तपस्या की कि उन्हें अपने खाने – पीने तक का ख्याल नहीं रहता था | अपने को इतना तपाया की गर्भ के बच्चे पर भी तप का परिणाम हुआ , और छाया के भूखे प्यासे धुप-गर्मी में तपन से गर्भ में ही शनि का रंग काला हो गया | जब शनि का जन्म हुआ तो सूर्यदेव शनि को काले रंग का देखकर हैरान हो गए | उन्हें छाया पर शक हुआ | उन्होंने छाया का अपमान कर डाला , कहा कि ‘यह मेरा बेटा नहीं है |’

श्री शनिदेव के अन्दर जन्म से माँ कि तपस्या शक्ति का बल था; उन्होंने देखा कि मेरे पिता , माँ का अपमान कर रहे है | उन्होने क्रूर दृष्टी से अपने पिता को देखा , तो पिता कि पूरी देह का रंग कालासा हो गया | घोडों की चाल रुक गयी | रथ आगे नहीं चल सका | सूर्यदेव परेशान होकर शिवजी को पुकारने लगे | शिवजी ने सूर्यदेव को सलाह बताई और कथन किया की आपके द्वारा नारी व पुत्र दोनों की बेज्जती हुई है इसलिए यह दोष लगा है | सूर्यदेव ने अपनी गलती की क्षमा मांगी और पुनश्च सुन्दर रूप एवं घोडों की गति प्राप्त की | तब से श्री शनिदेव पिता के विद्रोही और शिवाजी के भक्त तथा माता के प्रिय हो गए |

लोगों की ऐसी मान्यता है , समझ है , सूर्यमाला में जो शनि है , वहि शनिदेव का प्रतिक है , अर्थात या वैदिक संकल्पना है , शनिग्रह पत्थर, लोह से बना है जिसके ऊपर बरफ तथा द्रवपूर्ण हायड्रोजन की परत है | इसके तेजोवलय ६२००० किलोमीटर चौडे है , जो स्थूल मोटेरूप में १०० मीटर है |

हमारे जीवन में जन्म से लेकर , मृत्यु तक शनिदेव का प्रभुत्व है | जन्मते ही जातक के परिवार वालों की अभिलाषा होती है की हमारी राशि में या जन्म लेने वाले बच्चे की राशि में शनि कैसा है ? कौन से पाये पर बच्चे का जन्म हुआ है | प्रस्तुत पाये की पहचान की शनि के अच्छे – बुरे होने की पहचान जन्म से बतलाता है | अपने शरीर में लौह तत्व है , उस आयरन तत्व का स्वामी शनि है | शनि के कमजोर होने से , शनि के प्रकोप , शनि पीड़ा से वह आयरन तत्व शरीर में कम हो जाता है | आयरन की कमी से तमाम प्रकार की शारीरिक व्याधियों व्यक्ति को कमजोर करती है | आयरन है शरीर में तो बल है | आयरन के बिना शरीर की उर्जा समाप्त हो जाती है | शनि जिनका प्रबल है , उन्हें आयरन की हैरानी कभी नहीं होती है |

जगह

श्री शनैश्वर देवस्थान, शनी शिंगणापूर,
पोस्ट : सोनई, तालुका : नेवासा, जिल्हा : अहमदनगर
पिनकोड : ४१४ १०५. महाराष्ट्र , भारत.

गुगल मानचित्र